Friday, 21 April 2017

Thursday, 6 April 2017

Monday, 14 November 2016

रघुवर दास के नाम :

जीप हर मोड़ पे गुजरती है
हर तरफ फौज़ गश्त करती है
अपनी पोशाक में
सत्ता के सब घमंड लिए
मशीनगन की मैगजिन में
झारखंड लिए
तुम्हारे वास्ते
होंगे ये खान हीरों के
हमारे वास्ते ये मोर्चा ही आखिर है
सुनो ! तुम प्यार करती हो करो या ना करो ! लेकिन तुम्हारा साथ मुझको चाहिए हक की लड़ाई में

2008 में मेरी केरल यात्रा की डायरी के पन्नों से . . .

2008 में मेरी केरल यात्रा की डायरी के पन्नों से . . .
"क्यूँकि इतना तो पक्का है कि ये सिर्फ कासरगोड़ से त्रिवेन्द्रम तक का सफर नहीं है. ये सिर्फ NH-17 से NH-47 तक का रास्ता नहीं है और न ये केरल के समंदर के किनारे बिताए हुए दिन हैं. न तो ये एकांत में मिल रहे नए लोगों की गिनती है, ना ही नए कई चेहरों को पेन और कागज पर समेटने की कोशिश. लगातार चलते रहने की ऊब भी नहीं है और ना ही लगातार चलते रहने के लिए जोश को बनाए रखने का जुगाड़ ! फिर क्या है ये ! इतना तो महसूस कर सकता हूँ के वो थकान भी नहीं है जो 700 किलोमीटर चलने के बाद होनी चाहिए. मैंने जानबूझकर इसे जारी किए रखा है. बिना एक भी दिन रुके हुए. इतना कह सकता हूँ के उम्मीद का एक सिरा हमेशा मेरे एक हाथ में रहा है, जो शायद मुझे लगातार खींचता रहा है या शायद मैं जिसे लगातार धकेलता रहा हूँ आगे की तरफ़ . . . "
जमाने भर के उजले खोखले लोगों का भारीपन
बहुत हल्के से हँस के दो घड़ी में तोल देता हूँ
सिवा तेरे कोई सोचेगा क्या, परवा नहीं करता
मुझे जो बोलना होता है वो मैं बोल देता हूँ
मुझे मालूम है कपड़े मेरे मुझको डुबो देंगे
तो जब भी डूबने लगता हूँ सबकुछ खोल देता हूँ

Monday, 27 October 2014




जब तुम  झूठ कहते हो  हमें  मालूम होता है
जब तुम  सच बताते हो  हमें मालूम होता है

दोस्ती में  जान ले लो    . . . .   जान  दे देंगे
मगर जब आजमाते हो  हमें मालूम होता है

मेरी बातों से तुम अक्सर बहोत बेफ़िक्र रहते हो
मगर जब खार खाते  हो  हमें मालूम होता है

दिवाली में दिवाले में या अंबानी के ताले में
कहाँ पर झिलमिलाते हो हमें मालूम होता है 

Friday, 24 October 2014



####

खाली मुंडी डेविल का घर
आओ गाड़ दें मील के पत्थर

चला मुरारी गेरुआ धारी
हीरो बनने भेष बदल कर

लाल लंगोटी वाले देखो
संसद पहुँचे पहन के खद्दर

कब तक डर कर काँपोगे तुम
कुरूक्षेत्र में थर थर थर थर

बंदूकों को लील जाएँगे
फ़ौलादी सीनों के लश्कर

दुनियाँ कभी नहीं बदलेगी
जब तक हैं अल्लाह-ओ-ईश्वर

### हम दोगलापन दूर से पहचान लेते हैं ###




भगोड़े छोड़ कर मैदान चुप्पी तान लेते हैं
और हम दोगलापन दूर से पहचान लेते हैं

हमें मालूम है सरहद समय की पूँछ है यारों
मगर फ़िलहाल तेरी बेवकूफ़ी मान लेते हैं

के तुम अल्लाह भगवन् गाॅड सबके चाट लो तलवे
मगर हम भूत प्रेतों से नहीं एहसान लेते हैं

मुरारी दूध के बदले सवेरे माड़ पीता है
औ' साहेब जूस में भी बाॅर्नवीटा डाल लेते हैं

ज़रा सा भी भरम मत पालना के माफ़ कर देंगे
बदल देते हैं हम हरदम के जो भी ठान लेते हैं


###  होंठ तुम्हारे  नॉन वॉयलेंस
###  आँखें तेरी  हल्ला बोल ###


इश्क का दीवानापन देखो खोल दो डोरी खुल गई पोल 
होंठ तुम्हारे नाॅन वाॅयलेंस आँखें तेरी हल्लाबोल 

तौल रहा है पाई पाई खड़ी धूप में रिक्शेवाला 
मर्सीडीज़ में घूम रहे हैं कुकुर बिलाई सब अनमोल

मिल वर्कर्स और ट्रेड यूनियन दौड़ धूप कर हवा हो गए
और ट्रेड मिल्स पर भाग रहे हैं भारी भरकम गोलमटोल

भूत प्रेत निकट नहीं आवें महावीर जब नाम सुनावें
राहत भाई फिर से आओ छोड़ के अपना अल्लाह बोल

Friday, 17 May 2013

अगर सीधा पहुंचना हो तो फ़िर उलटी तरफ़ निकलो
तुम्हें पूरा जहाँ मिल जाएगा सुनाने समझने को 

बबली चड्ढा

बबली चड्ढा
बीसी की है ये सरकार
बीसी का हरदिन त्यौहार
बीसी के सपने रंगीन
बीसी की बातें नमकीन
बबली निकली एक दो तीन
बीसी खुश है तो खुशहाल
बीसी पलटे तो भूचाल
बीसी को यूँ सबसे प्यार
बीसी भड़के तो तलवार
बीसी बोले सच्ची बात
बोले बूँद को ये बरसात
बीसी बीज को बोले पेड़
बीसी राई को बोले ताड़
बीसी जाए by ट्रेन
तो बोले सबको aeroplane
बीसी long ड्राइव पे जाए
इसके नखरे वखरे हाय
बबली डिनर पे जाती है
SAB WAY pizza khati hai
बीसी ब्रांड पहनती है
उम्दा चीज़ उठाती है
बीसी ऑटो से जाए तो
 mercedease बताती है 

kerala journey

पहले थोड़ा ठहरे और फ़िर
एक सफर पर
चल निकले
बेख़ौफ़ चले
पैदल निकले
वक्त जहाँ
धीमा
धीमा सा
कई सदियों तक फैला है


समंदर पे हम अपना रुआब रखते हैं

वो कहते हैं अक्सर नीचे ज़मीन पर देखो 
मगर हम के करें हम ऊंचे ख्वाब रखते हैं 


 जो हम नहीं रखते वो बस हम नहीं रखते
मगर जो हम रखते हैं वो बेहिसाब रखते हैं 


हमने हवाओं के हवाले किया है कश्ती को
मगर समंदर पे हम अपना रुआब रखते हैं 

Tuesday, 11 September 2012

कोई problem है तुम्हें..!

जिससे आग सुलगी है
वो बयान मेरा है
ये ज़मीन मेरी है
आसमान मेरा है
कोई problem है तुम्हें..!
गली नदी सड़क हवा
शहर की रेलगाड़ियाँ
गगन के सब हवामहल
जहाँ तलक वज़ूद है
पूरा जहान मेरा है
यह ज़मीन मेरी है
आसमान मेरा है
कोई problem है तुम्हें..!
डर की सरज़मीन से
शेर की दहाड़ तक
तिल से लेके ताड़ तक
राई से पहाड़ तक
जहां तलक है ज़िन्दगी
हर मकान मेरा है...
ये ज़मीन मेरी है
आसमान मेरा है
कोई problem है तुम्हें ...!

Friday, 1 June 2012

ये सब ढाँचे हिल जायेंगे

वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है
दम साध के हम बैठे हैं मगर...
दम साध के बैठे हैं हम भी ।

इक रक्स अभी होते होते
इस वक्त का मतलब बो देगा
ये ज़ोर ज़बर के हर किस्से
इक रोज़ तो मानी खो देंगे
इक रोज़ तो दुनिया बदलेगी
मेरे जीतेजी सब होगा......
मेरी आंखों के आस पास .

ऐसा भी नहीं है के कोई
रफ़्तार अलग सी होती है
जब दौर बदल जाते हैं कहीं
चुटकी इक साथ बजाने पर

ऐसा भी नहीं है चुपके से
हम बुद्ध कहीं पर हो जायें
ऐसा भी नहीं है
सन्नाटा
कुछ और नहीं गहराएगा
ऐसा भी नहीं है बिन बोले
अल्फाज़ कभी खुशबू देंगे
ऐसा भी नहीं चरनेवाले
कुछ बीज कहीं पर बो देंगे ...

इक चीज पे ज़ोर लगाने से
ये सब ढाँचे हिल जायेंगे
कुछ और बढाओ रक्स अभी
कुछ और कुरेदो धरती को
वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है .

Monday, 23 April 2012

Friday, 27 January 2012

अगर कन्धों पे gun रखना

अगर कन्धों पे gun रखना
तो भीतर तुम
वज़न रखना
नसों में बिजलियाँ
और सीने में
लोहे सा मन रखना

बदन पर धूप की कालिख लगी हो
यूं उमर गुजरे
कलाई पर घड़ी हो
या न हो
चेहरा बताये सब

चेहरा बताये सब
समय को किस तरह तुमने
गुजारा है पसीने में
है कितनी आग सीने में
ये बोले आँख की सुर्खी
बताएं पैर के छाले
के तुम आये कहाँ से हो

हथेली पर लकीरों से भी ज़्यादा
चोट के किस्से
फ़साने हों फकीरों से भी ज्यादा
तेरे होठों पर.
निशाने पर हमेशा
खोखले सब कायदे रखना
trigger पे उंगलियाँ रखना
और
माथे पर कफ़न रखना
अगर कन्धों पे gun रखना
तो भीतर तुम वज़न रखना

अकेले ही निकलना गर कभी कोई न मिल पाए
फ़क़त
इतना यकीं रखना
के तुम तनहा नहीं बिलकुल
बहुत बारूद लेकर छातियों में
गुमशुदा हैं सब
ज़मानत पे रिहा हैं लोग
जो
सडकों पे दिखते हैं
ये सब अपनी तरफ आयेंगे
ये logic बताता है

ये सब इस्पात के ढाँचे
ये काली रात के ढाँचे
ढलेंगे फिर से सांचों में
गलेंगी कीमतें सारी
हवाएं
फिर से बदलेंगी
यक़ीनन
देख लेना तुम

के अब सब सीज़ हो जाएँगे इंजिन
देख लेना तुम
और ख़त्म होंगे सब division
देख लेना तुम

ज़िगर में इक तमन्ना
और नज़र में बांकपन रखना
अगर कन्धों पे gun रखना
तो भीतर तुम वज़न रखना



..........चौथा खंड समाप्त

Thursday, 22 December 2011

लह लह ईंट बनानेवाले

लह लह ईंट बनानेवाले
भट्ठी को सुलगाने वाले
खडी धूप के नीचे अक्सर
सूखे चने चबाने वाले
दिखते हैं कमज़ोर
मगर तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना
........................
ये धूप जले काले चेहरे
बेख़ौफ़ हँसी वाले चेहरे
पलकों पे धूल जमी इनकी
बाजू में खून दौड़ता है
ये पतले दुबले सींक बदन
इस्पात से ज्यादा असली हैं
ये चुप्पी साधे बिन बोले
हर बात से ज्यादा असली हैं
लो
खौल रहा है दौर
के चाहे
खूब मचा लो शोर
मगर तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना
ये सड़कों के सब कोलतार
जो हाथ गलाते रहते हैं
ये आग के ऊपर रोजाना ही
आते जाते रहते हैं
ये बेसब्री और सब्र के नीचे
कुछ बतियाते रहते हैं
ये ..........
सोलह घंटों में
जुटा रहे हैं
रोटी के दो कौर
के आखिर
कब तक रात रहेगी बोलो
देंगे सब झकझोर
कभी तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना
बस दिखते हैं कमज़ोर
मगर तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना

जो बदन गला कर मिटटी से
इस्पात बनाने वाले हैं
जो सड़कों पर चौबिस घंटे
गाड़ी दौड़ाने वाले हैं
जो 60 साल तक गेट-पास से
आने जाने वाले हैं
उनके हाथों में चाभी है
दुनिया के हर ताले की
और
चाभी ना हो तो भी वो
तालों को तोड़ के आयेंगे

वो
पत्थर तोड़ने वाले देखो
लौट रहे हैं इस जानिब
वो दरिया मोड़ने वाले देखो
लौट रहे हैं ईस जानिब
इस जानिब काफी गर्मी है
खौल रहा है अफ़साना
किरदार बदलने होंगे अब
हथियार बदलने होंगे अब
भीतर बदला बाहर बदला
और बदला चारों ओर
के अब तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना....
बस दिखते हैं कमज़ोर .....
कभी तुम
जोर से इनसे मत भिड़ना
जो
ऊंचे ऊंचे महल अटारी
अपने सर पे ढ़ोते हैं
अक्सर संजीदा होते हैं
और बीडी पीते रहते हैं.......
..............................
मरते हैं हर रोज़ मगर ये
फिर भी जीते रहते हैं
ये चुप रहते हैं अक्सर लेकिन
जब लड़ने पे आते हैं
चाहे जितना रोको
आपे से
बाहर हो जाते हैं
ऐसे में क्या होता है
इतिहास बताएगा पढ़ लो

इतिहास बनाए जाते हैं
और ख़ास बनाए जाते हैं
लेकिन इससे पहले शायद
खुद जलना पड़ता होगा
इतनी दूर पहुँचने में
काफी चलना पड़ता होगा
आओ
चलते हैं हम भी
दिल्ली के आला महफ़िल में
जहां
शीश नवाए जाते हैं
झंडे फ़हराए जाते हैं
और राष्ट्रगान के कोरस पे
जहां बैंड बजाये जाते हैं
जहां तोप तमंचे ताकत के
झूठे अफ़साने चलते हैं
और हरेक प्रांत के छोटे मोटे
गाने वाने चलते हैं
जहां नौटंकी अपनी पूरी
श्रद्धा से खेली जाती है
जहां भाषण झाडे जाते हैं
जहां झांट उखाड़े जाते हैं
जहां तमगे बांटे जाते हैं
और तलुवे चाटे जाते हैं
आओ
बीडी पीने वालों
आओ
के दिल्ली चलते हैं
तुम ईंट सजाने मत आना
तुम ईंट गिराने आ जाना
तुम आग बुझाने मत आना
तुम आग लगाने आ जाना
सच झूठ बताने आ जाना
दिल्ली खौलाने आ जाना
आओ
बीडी पीने वालों
आओ अबके माचिस ले के
तुम रास रचाने आ जाना
मुट्ठी खुलवाने आ जाना
मुक्के टकराने आ जाना
उलझन सुलझाने आ जाना
गद्दी को हिलाने आ जाना
हर चीज़ बचाने आ जाना
बीडी पीने वालों आना
दिल्ली खौलाने आ जाना



तीसरा खंड समाप्त

Wednesday, 21 December 2011

बस एक बार ये गिरेबान दिखलाओ तुम
और बदले में सारी दुनिया ले जाओ तुम

पलकें नीची करके मत बोलो कुछ भी
सच है तो फिर हमसे नज़र मिलाओ तुम

हम पत्थर हैं यहीं मिलेंगे सदियों तक
चाहे जितना घूम घाम कर आओ तुम

सच तो ये है तुम मौके पर भाग गए
बाद में चाहे जो भी वज़ह बताओ तुम

औकात पता करनी हो गर तुमको अपनी
तो हम जैसों से कभी कभी टकराओ तुम

अन्दर अन्दर बहुत खोखला है सिस्टम
इक ज़ोर का धक्का देकर इसे हिलाओ तुम

Sunday, 10 April 2011

दीवानगी का मतलब

दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से
तुम प्यार भी करोगे
मौक़ा निकाल कर के
इज़हार भी करोगे
सबका ख़याल कर के
इश्क है या क्या है ...
ये कैसा माजरा है
दीवानगी है... या के
बनिए का बटखरा है
आधा गले मिलोगे
तो दूरियां बढेंगी
महबूब से जो मिलना
पूरी तरह से मिलना

पहलू में खींच कर के
बाहों में भींच कर के
Ego हटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
सीना सटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
.............
जानम से जब भी मिलना
बिस्तर सजा के मिलना
डंके बजा के मिलना
तेवर में आ के मिलना

सुन इश्क का फ़साना
बेबाक जवानी से
लुटने का वक़्त आया
लूटो जहान वालों......
हम हाथ बढ़ाएंगे
तुम बेड़ियाँ तो लाओ
काफी जगह है अब भी
तुम गोलियां चलाओ
चौड़े हैं बहुत सीने
है इश्क बहुत गहरा
तुम पार हो गए तो
समझो के गनीमत है
समझो के गनीमत है
इक शै से प्यार करना
.......
हर शै से प्यार करना
आसां नहीं है बच्चू
.......
मुश्किल है
यानि ये भी
मुमकिन ज़रूर होगा

आओ के दुनिया में बहुत
और काम भी हैं
जैसे के ख्वाब सारे
असली बनाने होंगे
गुमनाम सारे मसले
सडकों पे लाने होंगे
वो सब उधार बातें
जिनका के वास्ता है
जनता की रोटियों से
चर्चे में लानी होंगी
आँखें मिलानी होंगी
तीली जलानी होगी
और फूंकना पडेगा
अपने मकान को भी
.........................
ये घर दुआर आँगन
कॉपी कलम के टंटे
बीमारीओं की गुत्थी
मसला ए रोजगारी
सब फूंकना पडेगा
सब फूंकना पड़ेगा
नॉलेज के सारे खाने
कॉलेज के सब खजाने
नकली इमारतें हैं
कुछ भी खरा नहीं है
रद्दी के भाव बेचो
या फूंक दो इन्हें भी

सच्चाइयों के ऊपर
हैं सैकड़ों कलेवर
जेवर हटा के देखो
तेवर में आके देखो
महबूब के लबों को
कच्चा चबा के देखो
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से

जो सब हसीन रातें
और बेहतरीन रातें
तनहाइयों में जग कर
हमनें गुज़ार डालीं
उन सबका वास्ता है
आओ टटोल डालें
हम आखिरी सिरे तक
आओ के ढूँढते है
इक पूंछ भी मिलेगी
हम जानवर हैं अब भी
और ये ज़रूरी भी है

जानम की पसलिओं में
हम उंगलियां गड़ा कर
छू लेंगे धडकनों को

आओ के चूम लूं मैं
फिर से तुम्हारी जांघें

आओ के रात अब भी
आधी बची पडी है
लेकिन ये स्साली दुनिया
शायद बहुत बड़ी है
और घर से निकलना है
भीतर से निकलना है
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से

........दूसरा खंड समाप्त

Friday, 8 April 2011

बदलेगा सारा मंज़र

लौटेंगी आंधियां अब
टकरा के चिलमनों से
आवाज़ आ रही है
मिटटी की धडकनों से
मिट जायेंगे मुहाने
ढह जायेंगे ठिकाने
बदलेंगी रास्तों को
फिर से तमाम नदियाँ
फिर से सजायेंगे हम
गुस्से को नए सिरे से
अबके अदीब सारे
मिट्टी के शेर होंगे
हैं साहिबान जितने
तीतर बटेर होंगे
वो देखो कांपते हैं
उलझन सजाने वाले
गरमी को भांपते हैं
सरहद बनानेवाले
चूल्हे सुलग रहे हैं
मसले भी जग रहे हैं
मैदां में आ गए हैं
लोहा गलाने वाले
सारे के सारे आये
जो भी थे आने वाले
अब फूँक दो ज़मीं को
या फोड़ो आसमां को
अब कुछ नहीं है मुमकिन
बदलेगा सारा मंज़र....
संगीन थरथरा कर
गोली चला रहे हैं
फ़ौलाद जैसे सीने
आते ही जा रहे हैं
...........
हैं मौत के फ़साने
सब उनके कारखाने
तोपें भी बन रही हैं
बैनर भी छप रहे हैं
जितने भी हैं दिवाने
सब भूख के बहाने
नोटों को जप रहे हैं
वोटों में खप रहे हैं
..........
लेकिन अभी भी मौसम
ऐसा है हर तरफ के
मरता है बोनेवाला
पीता है सोनेवाला
लगता है ऐसा क्यूँ कर
कुछ तो है होनेवाला
कुछ तो है होनेवाला
......
मेहराब चरमरा कर
गिर जायेंगे यक़ीनन
तुम देख लेना यारों
ऐसा ज़रूर होगा
ये सब सितम के किस्से
कब तक उबाल लेंगे
इक रोज़ रोशनी हम
आँखों में डाल लेंगे..........
वो चाप सुन रहे हो
जो लोग आ रहे हैं
जिनको के टीवी वाले
नक्सल बता रहे हैं
.........
कुत्तों को सरहदों से
जंगल में ला रहे हैं
बिजनेस के सब खिलाड़ी
हमको लड़ा रहे हैं
हम लड़ रहे हैं छक्के
हम लड़ रहे हैं चौके
हम लड़ रहे हैं देखो
हर ओर बौखला के
हम लड़ रहे हैं देखो
अपनों से खौफ़ खा के
वो बाँटते हैं हमको
हम
बंटते ही जा रहे हैं
बंटते ही जा रहे हैं
..............
वो बस्ती जला रहे हैं
वो टावर बना रहे हैं
बंबई के बांदरा में
सुलगे से आंधरा में
अखबार सारे उनके
व्यापार सारे उनके
पी.एम्. से लेके सी. एम्.
दरबार सारे उनके
जनपथ के इक महल से
कुछ शाही शाहजादे
दुश्मन को दे रहे हैं
पेट्रोलियम के वादे
यूरेनियम के गड्ढे
पैलेडियम की खानें
बस्तर के ठीक नीचे
है सब निगाह उनकी
जंगल के पेड़ उनके
जंगल की राह उनकी
वो सोचते हैं ऐसा........
पर ऐसा भी नहीं है
..............
तुम बम गिराओ चाहे
एटम गिराओ चाहे
हारेंगे हम नहीं तो
जीतोगे तुम कहाँ से
हारेंगे हम नहीं तो
जीतोगे तुम कहाँ से...............
कोई रास्ता नहीं है
चाहे जहां भी जाओ
हम हर जगह मिलेंगे
बाजू उठा के देखो
चौपाल नुक्कड़ों पे
सब दौड़ती ट्रकों पे
रेलों में धडाधडा कर
आते ही जा रहे हैं
पटरी पे राजधानी
दिल्ली को जा रही है
संसद बचाओ अपने
सब पद बचाओ अपने
छोडो दलाल धंधे
मरने का वक़्त आया
चाहे बटन दबा लो
तुम रेड ग्रीन सारे
अब वक़्त आ गया है
बदलेगा सारा मंज़र
..........
कोहराम इस समय का
इतिहास में दिखेगा
हाथों से पोछ देंगे
अट्टालिकाएं सारी
इक फूंक से उड़ेंगे
सारे हवाई अड्डे
सिस्टम के सब अदालत
धरती पे ढेर होंगे
दुनिया के हर शहर में
बहुत हेर फेर होंगे
वो देखो सारे घोड़े
सब हाथ के हथोड़े
बढ़ते ही आ रहे हैं
बढ़ते ही आ रहे हैं
सब थाम लो लगामें
गर्दन उठा के देखो
गर देखना हो तुमको
परदे हटा के देखो
वो देखो बान्दरा में
बिल्डर के चंद लौंडे
पेट्रोल छीट कर के
सबको जला रहे हैं
फायर ब्रिगेड वाले
पहुंचे नहीं हैं अब तक
पहुंचे ..तो tanker में
पानी नहीं हैं उनके
पानी नहीं है.....यानि
पेट्रोल भरा होगा...
..........
सिस्टम के सब मुलाजिम
बिल्डर के वास्ते हैं
शब्दों के खाली डिब्बे
शायर के वास्ते हैं
टायर जला के मारो
या फायर चला के मारो
बात तो वही है
परदे हटा के देखो
गर्दन कटा के देखो
गुस्से में आ के देखो
बदलेगा सारा मंज़र
..............
तुम आजमा के देखो
पंजे लड़ा के देखो
बदला है जब से मौसम
किस्सा बदल गया है
सिस्टम के सारे पुर्जे
अब जंग खा गए हैं
और
लोहा गलाने वाले
मैदान में आ गए हैं
कटघरे में कैदी
गाँव के भोले भाले
और सच खंगालते हैं
ये काले कोटवाले
ये झूठे डेट सारे
ये जम्बो जेट सारे
औंधे पड़ेंगे इक दिन
मजदूर उठ रहे हैं
मजबूरिओं से ऊपर
बदलेगा सारा मंज़र
.............
इतना सुकून क्यूँ है
हर सू जिधर भी देखो
पुस्तक में क्या लिखा है
थोडा इधर भी देखो
मसला यहाँ खडा है
मुद्दा बहुत बड़ा है
मुट्ठियों को कस लो
डर को हटा के देखो
खुद से निकल के आओ
बाहर भी चल के आओ
दुनिया बहुत बड़ी है
दुनिया बहुत बड़ी है



पहला खंड समाप्त ........

Sunday, 9 May 2010

शिक्षा के पंडी जी बढ़िया उसूल बा / bhojpuri geet

शिक्षा के पंडी जी बढ़िया उसूल बा
फांसी लगवले बा लईका के भूल बा
बहरी गुलमोहर बा भीतर बबूल बा
ओहनी के सोना बा हमनी के धूल बा
लईका मुअवले बा नीमन इस्कूल बा
शिक्षा के पंडी जी बढ़िया उसूल बा
नंबर के मीटर ले बुद्धी नपाला
सरकारी मर्जी ले कोस्चन छापाला
रट रट के पुस्तक ले पर्चा लिखाला
आ.. ...
जादे बा बुद्धी त तनिका घटा दअ
गणित आ physics के तनिका सटा दअ
science ले litereture फरिका हटा दअ
जतना जरूरी बा ओतना बढ़ा लअ
जऊंची ले ख़तरा बा ओह्के घटा दअ
NDA भरी ई सेना में जाई ........
नाही त डाक्टर इंजीनियर कहाई
आ.....
नाही कुछ होखल त टीचर हो जाई
इस्कुलीये हमनी के गुलशन ह बाबु
उहे टीचरवा अब गुलशन के फूल बा
शिक्षा के पंडी जी बढ़िया उसूल बा
फांसी लगवले बा लईका के भूल बा
पइसा खियवले बा चुनरी चढवले बा
नंबर बढ्व्ले बा लईका ई cool बा
सेटिग लगवले बा पढ़ल फिजूल बा
इंग्लिश पढ़ावअ कि इंग्लिश जरूरी बा
दुनिया में अब खाली भाषा के दूरी बा
जिनगी पर इंगलिशिया लहजा चढ़ा दअ
धीरे से तू आपन कागज़ बढ़ा दअ
बानर ई तोहरे बा जईसे नचा लअ
डूबल खेवईया कि नईया बचा लअ
बचपन ले मानेला शिक्षक के ज्ञानी
लईका ई जानेला आधा कहानी
आधा में शिक्षा के सादा उसूल बा
आधा में बिजनस के फयदा कबूल बा
बहरी गुलमोहर बा भीतर बबूल बा
फांसी लगवले बा लईका के भूल बा
शिक्षा के पंडी जी बढ़िया उसूल बा

जब बोर्डर पर ले सेना के भीतर बोलवावल जाई / bhojpuri geet

जब बोर्डर पर ले सेना के भीतर बोलवावल जाई
जहिया अपने जंगल में ले जा के टैंक घुसावल जाई
कुल घास जरावल जाई पक्का रोड बनावल जाई
आ.. कंटेनर में भर के जब गोली मंगवावल जाई
जहिया घुस के घर में धाएँ धायँ बन्दूक चलावल जाई
आ.. बरसाती सर्दी खांसी जब स्वाइन फ़्लू कहलाई
खाली एक महीना भर में बबुआ पइसा खूब पिटाई
आ.. अक्तूबर के आवत आवत स्वाइन फ़्लू उधियाई
जब जनता के चूसे के खातिर प्लान बनावल जाई
तब..
मीडिया बोलवावल जाई आ विडिओ करवावाल जाई
कुकुरन के पिछ्वारी में पेट्रोल छुआवल जाई
आ.. पक्का रोड से कुकुरन के जंगल में घुसावल जाई
तब बोर्डर पर ले सेना के भीतर बोलवावल जाई
बबुआ धीरे धीरे बोलअ ना त पुलिस पकड़ ले जाई

जब जब राम नाम के सांच बता के देह उठावल जाई / bhojpuri geet

जब जब राम नाम के सांच बता के देह उठावल जाई
तब तब मुक्ती के नाम पे दू गो पेड़ जरावल जाई
सुन ल आर्यपुत्र ! एगो मुअला पर दूगो पेड़ जरेला
सुन ल आर्यपुत्र ! कि पांच साल पे एगो आम फरेला
सुन ल आर्यपुत्र ! ई धरती के मत बाँझ बनावअ भाई
सुन ल आर्यपुत्र ! तू कुरुछेत्र के लाल बना के छोडलअ
सुन ल आर्यपुत्र ! तू जंगल के कंगाल बना के छोडलअ
सुन ल आर्यपुत्र ! तू सरस्वती पाताल में जा के छोडलअ
सुन ल आर्यपुत्र ! तू बहिरन के वाचाल बना के छोडलअ
सुन ल आर्यपुत्र ! संगम ले जहिया एक नदी उड़ जाई
सोचअ कतना पेड़ कटाइल सोचअ कतना पेड़ कटाई
जब जब राम नाम के सांच बता के देह उठावल जाई
तब तब मुक्ती के नाम पे दू गो पेड़ जरावल जाई
सुन ल आर्यपुत्र ! इतिहास बदलला ले नाही कुछ सुलझी
जब तक सूर्यपुत्र मनसह्का घोड़ा नीयन सबसे उलझी
जब तक पांच पुत्र के ईश्वर के वरदान बतावल जाई
कि जब तक खरिहानी में धान पे अग्निबाण चलावल जाई
बोलअ आर्यपुत्र कि सूर्पनखा के नाक तू कैसे कटला
बोलअ पांच भाई में आर्यपुत्र मेहरारू कैसे बटला
सुन ल आर्यपुत्र ! तू हमरा ले लड़बअ त मुह के खईबा
जहिया ई पर्दा हट जाई ओहिदीन तू लंगटे हो जईबा
बोलअ आर्यपुत्र तू सोना के हरिना के पीछे भगला
बोलअ आर्यपुत्र कि बनरन भलुअन के तू कईसे ठगला
खोलअ आर्यपुत्र ई झूठ मूठ के सब गठरी तू खोलअ
कहला पर धोबी के सीता जी के तू दुतकरलअ बोलअ
बोलअ घास उठा के कोई कहाँ ले लईका एक बनाई
बोलअ बीना छुअले लव के छोटा भाई कहाँ से आयी
बोलअ बाल्मीकी तू सीता के चक्कर में कईसे पडलअ
बोलअ बाल्मीकी सब राज़ तू आतना भीतर कईसे गड़लअ

Saturday, 8 May 2010

जहिया प्रीत लगावल जाई / bhojpuri geet

जहिया प्रीत लगावल जाई
जहिया रीत बनावल जाई
जहिया जीत सजावल जाई
ओहिदीन गीत ई गावल जाई......


जहिया कठपूतरी के काठ के जइसन
नाच नचावल जाई
जहिया आँख खोल के दुश्मन पर
तलवार चलावल जाई
ओहिदीन गीत ई गावल जाई........

जहिया आन पे आवल जाई
ओहिदीन बाण चलावल जाई
मन से दाग छोडावल जाई
नींद से जाग के आवल जाए
आ तू गोहरईबू जहिया ओहिदीन
भाग के आवल जाई
ओहिदीन प्रीत जतावल जाई
ओहिदीन सांच बतावल जाई
ओहिदीन आपन अनकर छोड़ छाड़ के
मीत बनावल जाई

जहिया मंदिर मस्जिद के अंगना
के भीत गिरावल जाई
ओहिदीन ईद मनावल जाई
ओहिदीन फगुआ गावल जाई
आ ......
चुल्हा में जतना सुलगी
ओतना सुलगावल जाई
जब जब प्रीत लगावल जाई
तब तब प्रीत निभावल जाई....

चोरवा भईल बहुत होशियार / भोजपुरी गीत

चोरवा भईल बहुत होशियार
बच के रहिह बरखुरदार
अबके कोट-कचहरी के रहता ले
आयी तोहरे द्वार
लेके कुर्की जब्ती लीगल
नोटिस वोटिस के भरमार
चोरवा भईल बहुत होशियार
बच के रहिह बरखुरदार

सब दुनिया के पइसा जाला
सिंगल पाकिट में

हमनी के अटकल बानी जा
छटकल प्रोफिट में
चोरवा wrong के बोले right
चोरवा black के बोले white

ब्लैक white के फांक में पाकल
loan के कारोबार
चोरवा भईल बहुत होशियार
बच के रहिह बरखुरदार

चोरवा अदिमी के कुचिले के खातिर
चढ़ के आइल कार
चरवा मौत के कम्पंसेसन देता
१८-२० हज़ार
देके नोट खरीदे वोट
के चोरवा हाई कोर्ट के यार
चोरवा पइसा देके पलटी अबकी
चुटकी में सरकार
चोरवा छीना झपटी छोड़ छाड़ के
कइले बा व्यापार
चोरवा महुआ ताड़ी दे के भेजी
सबके गंगा पार
चोरवा पीठ के पीछे बेच के आयी
गंगा जी के धार
चोरवा भईल बहुत होशियार
बच के रहिह बरखुरदार

Tuesday, 30 March 2010

जब तंत्र उखाड़े जाते हैं

जब तंत्र उखाड़े जाते हैं
तब शोर शराबा होता है
दस्तूर यही बतलाता है....
दस्तूर यही बतलाता है
के उठी हुई गर्दन ही अक्सर
कटती है मैदानों में
गर्दन जिनकी झुकी हुई हो
अक्सर आड़े आते हैं
जब तंत्र उखाड़े जाते हैं
जब झंडे गाड़े जाते हैं
दस्तूर यही बतलाता है

दस्तूर यही बतलाता है
के हाथ मिलाने से भी पहले
आँख मिलानी होती है
और आँखों में ही सारे सौदे
हो जाते हैं रोज़ यहाँ
रोज़ यहाँ मिटटी के नीचे
मुर्दे गाड़े जाते हैं
और बहुत बेशर्मी से फिर
हाथ भी झाडे जाते हैं...
हाथ में मिटटी रह जाये
तो पेपर गंदा होता है

इक बेजुबान सा ढांचा है
जो रोज़ निगलता है मुझको
मैं रोज जरा सा ढह जाता हूँ
ढाँचे से लड़ते लड़ते....

जब ढाँचे ढाने होते हैं
तब व्यूह सजाने होते हैं
तब चीज़ों को काफी
बारीकी से पढना होता है
तब करने से पहले
मंसूबों को गढ़ना होता है
तब फांसी पर सबसे आगे
आकर चढ़ना होता है
असेम्बली में घुस के फिर से
एक धमाका हो जाये
संसद में बस विस्फोटों से
सूत्र बिगाड़े जाते है
कानों पर से खामोशी के
परदे फाड़े जाते हैं
जब तंत्र उखाड़े जाते हैं
तब शोर शराबा होता है .

Sunday, 28 February 2010

अभी बारूद की
खुशबू उड़ेगी फिर हवाओं में
अभी तोपें चलेंगी
जंगलों में बाघ चीतों पर
अभी हाथी के बच्चों पर निशाने साधे जायेंगे
अभी खरगोश बालों से
बनेंगी कूचियाँ अपनी ...
के आओ
जश्न में हम भी ज़रा सा झूम कर देखें
के जंगल का वोही हिस्सा जहाँ बगुले टहलते हैं
के उस पोखर के कुछ नीचे
सुना
यूरेनियम भी है

Tuesday, 23 February 2010

दद्दा का कोई कहना हम कैसे टाल देंगे
दद्दा बड़े हैं हमसे
दुनिया चला रहे हैं
दद्दा का एक रुतबा है
लोगबाग कहते हैं...

दद्दा जहाँ पे चाहे मिसाइल डाल देंगे
टिगरिस कि एक छेद से चूहा निकाल देंगे
दद्दा के करिश्मे का अंदाज़ दूसरा है
तुम देखना के इक दिन ऐसा जरूर होगा
दद्दा हमारी डूबती नईया संभाल देंगे
दद्दा ने CTBT से हमको जोड़ डाला
दद्दा कि मेहरबानी हम खुद को बेच पाए ...

दद्दा के language में हर बच्चा बोलता है
दद्दा ने बैठ कर खुद
बदले हैं सब सिलेबस
दद्दा को सब पता है
किस किस को बदलना है
दद्दा का एक हाथ हमेशा है मेरे पीछे
और दुसरे से दद्दा अपनी खुजा रहे हैं
जब bat ball के जोश में आकर
हम चिल्ला कर मिलते हैं
तब राजनीति के घाघ पशु सब पूँछ हिला कर मिलतें हैं
और
दुनिया भर के सूदखोर
दाओस में जाकर मिलते हैं ...
जब सरकारी बाबु दफ्तर में पिज्जा बर्गर खाते हैं
जब फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास को हम जायज़ ठहराते हैं
और महंगाई हमसे मिलने जब बुल डोजर पे आती है
तब असली मुद्दों पर कोई बात नहीं की जाती है
तब वो झोंके जाते हैं जिन पर रोटी के लाले हैं...

ये बेलगाम घोड़े बस्ती की जानिब किसने मोड़ दिए
ये जोर ज़बर के सब किस्से किस छोर पे जाकर मिलते हैं .

आओ लोहे को थोडा सा और तपा कर मिलते हैं
अपनी सारी कमज़ोरी से बाहर आकर मिलते हैं
हमने मिलकर कई अंधियारे
पत्थर से चमकाए हैं
हम उनके सब मंसूबों को फिर से पानी कर देंगे .
के तुम्हारे वास्ते हम
लड़ेंगे हर खुदा से
तुम्हें
कैसे भूल जायें
तुम मां रही हो मेरी...
तुम वो जमीं हो जिसपे
पूरा का पूरा सिस्टम
बोली लगा रहा है

कहतें हैं तेरे नीचे सोना दबा हुआ है

गेहूं कि फुनगियों पर
सोने की बालियाँ हैं
हम
भूख से तड़प कर
सोना उगा रहे हैं...

हम जानते हैं तेरी
मौजूदगी का मतलब
और
तुम भी यकीन मानो
जब तक के हम खड़े हैं
कोई नहीं है ऐसा
तुमको जो रौंद डाले.
तुम अपने ख्वाब की ऊंची उड़ानों का मज़ा देखो
हम अपने हाथ के
छालों से
तरकश को संभालेंगे
जहां पर उड़ रहे हो तुम
हवाओं से भी कुछ ऊपर
वो पूरा आसमान हम अपनी मुट्ठी में छुपा लेंगे
कभी उलझो नहीं हमसे
के हम
धरती पे रहते हैं

हमें जो झोंक रक्खा है यहाँ तुमने मशीनों में
तो फिर
धीरज धरो कुछ दिन
के अब
ऐसी भी क्या जल्दी
के सब बन्दूक तोपें
सब मिराजो मिग तुम्हारे
तान कर बैठे हो क्यूँ हमपे
कोई सौदा किया है....
या
कहीं पर
बेच कर आये हो तुम
ईमान को अपने

Thursday, 19 November 2009

शब्द

शब्दों के सुनहरे सांचों में
सब तर्क कुतर्क
ढले होंगे
हमने ख़ुद को सहलाने में
शब्दों से
तस्सल्ली ली होगी
हमने
ख़ुद को उलझाया है
शब्दों से फ़साने बुन बुन कर...

जो तुम समझो
वो हम समझें,
तो शब्द सही हो जाते हैं

शब्दों की मुकम्मल दुनियाँ में
इक और कोई
रहता है कहीं
जो मुझसे तुझमें जाता है
और तुमसे मुझमें आता है

इक चीज़ कोई
रहती है जिसे
हम देख नहीं पाते हैं कभी...
इक रोज़ कहीं तनहाई में
हम बूझ गए
तो बूझ गए.

वो चीज़
वो छोटी सी उघरण
इक शब्द का ख़ाली aura है
शब्दों की हकीक़त इतनी है
के हम तुम दोनों
सहमत हैं
इक शब्द उबलता है जब भी
इक अक्स उभरता है पहले
इक चीख कोई
बस ठीक वहीँ
पैरों पे खड़ी हो जाती है

इक शब्द का ख़ाली aura फिर
उस चीख से
भर भर जाता है

Sunday, 15 November 2009

ये सब ढाँचे हिल जायेंगे

वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है
दम साध के हम बैठे हैं मगर...
दम साध के बैठे हैं हम भी ।

इक रक्स अभी होते होते
इस वक्त का मतलब बो देगा
ये ज़ोर ज़बर के हर किस्से
इक रोज़ तो मानी खो देंगे
इक रोज़ तो दुनिया बदलेगी
मेरे जीतेजी सब होगा......
मेरी आंखों के आस पास .

ऐसा भी नहीं है के कोई
रफ़्तार अलग सी होती है
जब दौर बदल जाते हैं कहीं
चुटकी इक साथ बजाने पर

ऐसा भी नहीं है चुपके से
हम बुद्ध कहीं पर हो जायें
ऐसा भी नहीं है
सन्नाटा
कुछ और नहीं गहराएगा
ऐसा भी नहीं है बिन बोले
अल्फाज़ कभी खुशबू देंगे
ऐसा भी नहीं चरनेवाले
कुछ बीज कहीं पर बो देंगे ...

इक चीज पे ज़ोर लगाने से
ये सब ढाँचे हिल जायेंगे
कुछ और बढाओ रक्स अभी
कुछ और कुरेदो धरती को
वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है .

ये शब्द कहाँ तक जाते हैं

गूंगेपन से हुंकारों तक
मछुआरों से ऐयारों तक
ये शब्द कहाँ तक जाते हैं

ये सदियों की गहराई में
घुलते घुलते बदरंग जहन
थोड़ा सा नया समझौता है,
शब्दों की हिरासत जारी है
शब्दों पे खुला करते हैं कई
गुमनाम जगह के सब सांचे
शब्दों की मरम्मत के जरिये
हमने दुनिया को ढाला है
हमने अपने एहसास कई
शब्दों पे ख़रीदे बेचे हैं....

देखो बातों ही बातों में
हम दूर कहाँ तक आ निकले
ये तीन पाँच
ये sine cos
जाने कैसे बन जाते हैं
चलते चलते दो शख्श कभी
जब हौले से छुप जाते हैं
ये शब्द कहाँ तक जाते हैं

हम दोनों में जो एक है वो
हमने शब्दों में ढूँढा है
हम दोनों में जो नेक है वो
हमने शब्दों में ढूँढा है
इक चोर है जो रहता है यहीं
शब्दों की गली या नुक्कड़ पे
एक चीज कोई होती रहती है
शब्द जहाँ पर रहते हैं
सबकी साझा बोली की तरह
हँसते गाते चलते फिरते
हम एक अधूरी खोज लिए
निकले हैं न जाने किस जानिब

Friday, 17 July 2009

वो कहानी
वो अफ़साने
किरदार वो
वक्त की गर्म शाही सियाही तले
अब भी जिंदा लहू से चमक्तें हैं जो
उनकी सब कोशिशों का सिला है ये लौ
इसकी मद्धम लगन
इसकी पुरजोर कोशिश सुलगते हुए
इतनी रौशन के
तुमसे और हमसे कई
काढ़ लाते हैं सिस्टम के अंधे कुएं से जरा हौसला....
के ये हौसला
उन दीवानों ने तोहफे में
भेजा हमें
रौशनी के लिए जो कहीं खोह में
जल गए लौ की मानिंद अपनी जगह
वो जगह अब भी jyaada ghana डर लिए
ghooma करता है झूठे कई सर लिए
जिनको waajib batlane के waaste
पहले khwabon के guchchhe uchhale गए
phoonk कर gaaon से सब nikale गए
जो jahan fit हुए jhat से dale गए
कुछ to ऊंचे bike boliyon की तरह
beringon में ghise goliyon की तरह
sabko peesa गया जिस तरह ये pise
rail की सब patariyaan बनी हर तरफ़
jinke hathon और hathon के chhale लिए
jinke bachche wahin मोड़ per सो गए
हार कर नींद से बिन niwale लिए
ये सड़क जिसकी taamir में ungliyaan
pattharon की तरह kooch डाली गयीं
ये patariyaan जो dam saadh कर थाम lein
rajdhani की bebaak raftaar को
इन patariyon से wabasta घर lut गए
भूख jinke daron पे rambhati रही
और tarakki की reil आती जाती रही
वो diwane जो bazaar में बिन bike
रौशनी के लिए chhatpatate रहे
उनकी
सब कोशिशों का सिला है ये लौ


Thursday, 16 July 2009

डर लगता है

जब रेल में चढ़ना होता है , डर लगता है
जब खेल में लड़ना होता है , डर लगता है
जब यारों से तू तू मैं मैं हो जाती है
भीगी बच्ची फुटपाथ पे जब सो जाती है
जब एअरपोर्ट पे तीस रुपए के पानी से
उनके कुत्तों की प्यास बुझाई जाती है
जब परदे पर जूरी के आगे बर्लिन में
उस इक बच्चे पे फ़िल्म दिखाई जाती है
जब सीन सराहा जाए बंद थिएटर में
जब क्रेडिट पढ़ना होता है , डर लगता है
नंगे पाँव चलने वालों की बस्ती में
जब शीशे के baazaar sajaye jate हैं
जब मन्दिर मस्जिद gurudware के साथ साथ
ऑफिस केबिन में शीश नवाए जाते हैं
जब दाल भात भी थाली में कम जाता है
जब भीतर का सारा उछाल थम जाता है jab
shehjaade गद्दी पे बिठाये जाते हैं
जब भूख प्यास फर्जी बतलाये जाते हैं
जब की लड़ना है लटक रहे सब तालों से
टाटा बिरला और यम् कुबेर दिक्पालों से
जब शोर शराबा भीतर से हुंकार करे
जब असलाहों में दस्ताने बारूद भरें
जब भरी सभा में घोषित हो सम्मान कोई
जब अपना मुखिया बन जाए अनजान कोई
जब कदम ताल पे संगीनें उद्घोष करें
जब मरनेवालों पे जनता अफ़सोस करे
जब आम बजट से गुड गायब हो जाता है
अपने बूते से बाहर सब हो जाता है
जब सरकारी दफ्टर सब दल्ले हो जायें
जब अस्पताल पैसे के गल्ले हो जायें
जब इस्कूलों में बाप की दौलत पढ़ती हो
जब घर बिन बतलाये धाये जाते हैं
जब डर पाले और बढाये जाते हैं
जब पलते पलते और पालतू हो जायें
जब अपनी नजरों में ही फालतू हो जायें
जब सत्य ahinsaa और भरम के नारों से
जब ladnewalon को नकली hathiyaro से
lais kara के border पे thele जायें
जब cash के dum पे खेल सभी खेले जायें.......

Saturday, 13 June 2009

धोखा

बहुत मासूमियत से
अपनी बातों से मुक़र जाना
कोई सीखे
तो फ़िर तुमसे,
मेरे अल्लाह मेरे मौला .
कहा था
ये जमीं ,
बेहतर बनाऊंगा मैं जन्नत से .....
बिगड़ बैठी
तो कहते हो
कि मेरा बस नहीं चलता

Saturday, 16 May 2009

सन्नाटे का घूंघट खोलो

जब भी निकला
टक्कर लेने
मैं
बीच सड़क पर खौफ से लड़ कर
चीर के भीड़ का घेरा.......
मेरे भीतर की चीख को सुन के
दूर गगन पे
काँप उठा चन्दा सूरज का डेरा........
सतरंगी सपनो से जागो
हाथों से हाथों को जोडो
आंखों से अंगारे उगलो
मुक्के से दीवारें तोड़ो ........................................
........................................................................
ये आसमान के इर्द गिर्द
ये चाँद सितारों के
आजू बाजू
जलते बुझते जुगनू.........
ये चंद लोग
जो रोज़ फलक पर सुलगाते हैं फ़िर से एक सवेरा.....................
.......................................................................................
अंधियारों में आकर देखो
थोड़ा सा थर्रा कर देखो
बोलो बोलो भाई
जोर से बोलो
सन्नाटे का घूंघट खोलो ...................................

Monday, 27 April 2009

ghazal

कोई तो मुजरिम बताया जाएगा
फैसला जब भी सुनाया जाएगा

या तो अम्बर को छुपा लेंगे कहीं
या तो पत्थर को मनाया जाएगा

दीवार को गिरने की आदत है मगर
फिर से इंटों को सजाया जाएगा

अबके सीखेंगे सँभालने का हुनर
फिर मुक़द्दर आजमाया जाएगा

गर हुआ पैबंद बिस्तर में कही
ख्वाब को पहले बिछाया जाएगा

ghazal

ना जाने क्यूँ हुआ करता है अक्सर वक्त थोड़ा सा
अभी तो आसमां में एक दरिया भी बनाते हम

अब क्या सुनें तेरी के सहरा में नहीं कुछ भी
अगर अपनी गरज होती समंदर ढूँढ लाते हम

तुम्हारे ख़त में इतने फासलों का ज़िक्र था वरना
अगर थोडी जगह होती तो शायद मान जाते हम

बहुत जायज है तेरा ज़िक्र महफिल में उठा देना
अगर सबसे छुपाते अब तलक तो भूल जाते हम

अगर मिलते कदम तेरे, पता अपना बताते हम
उन्हें घर पे बुलाते और तुझको आजमाते हम

ghazal

हौले हौले मोम से गल जायेंगे
तुम जिस कदर चाहोगे हम ढल जायेंगे

आओ ढूँढें आग की परछाइयां
कच्चे रिश्ते ख़ुद ब ख़ुद जल जायेंगे

कौन सा वादा है अपना मौत से
तुम कहो रुक जाओ, तो कल जायेंगे

कर के देखो रास्तों पे बंदिशें
फिर बंदिशों के पाँव निकल जायेंगे

रेशा रेशा रात खुलती जायेगी
रफ्ता रफ्ता रस्सी के बल जायेंगे

Thursday, 23 April 2009

खाली घडे जैसा

वो बस
इक बूँद था
और मैं
किसी खाली घडे जैसा ..

मेरी बुनियाद में
मसलों की इंटें थीं लड़कपन से
उसे बचपन से ही महलों में
कुछ ज्यादा
थी दिलचस्पी,
मैं कंचों को जमीं पर खेलता था
उँगलियों से जब
वो बाहर
ताश के पत्ते सजा कर
दांव चलता था.........
बहुत ज्यादा बड़ा वो हो गया है
आजकल मुझसे
के मैं
अब बूँद हूँ
और वो
किसी खाली घडे जैसा .

सुलगी ..तो सुलगा कर देखेंगे

सुलगी ....
तो सुलगा कर देखेंगे
हम भी आग लगा कर देखेंगे

ज़ख्मों को सहला कर देखेंगे
लोहे को पिघला कर देखेंगे

सिस्टम से टकरा कर देखेंगे
हम भी दांव लगा कर देखेंगे
सुलगी........
........तो सुलगा कर देखेंगे

Wednesday, 15 April 2009

तब कहना

एक नमाजी
जब आवारा हो जाएगा तब कहना
जब घड़ियों में साढे बारह
हो जाएगा तब कहना
सूरज के सारे कारिंदे
जब कोड़े बरसाएंगे
धूप में थक कर जब वो बन्दा
सो जाएगा
तब कहना
मैं उस वक्त कहीं ए सी में
बैठे बैठे सुन लूँगा

तब कहना

गलोब्लैजेशन में गुलज़ार

रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
और कुछ पन्ने जरा सा khadkhada कर रह गए
और कुछ अल्फाज़ थे
जो लड़खड़ा कर रह
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा

Tuesday, 31 March 2009

अजीब दूरी है

आज इस रिहाई का
क्या करूंगा मैं आख़िर ,
कोई भी नहीं अपना
गैर भी नहीं कोई
एक अजीब दूरी है ..../
एक की रिहाई है
दस हजार गुम सुम हैं
बेजुबान होने के
सैकड़ों बहाने हैं /
कैसे कैदखाने हैं
जो हमें नहीं दिखते
उस मकान के पीछे /
कौन सी कहानी है
जो नहीं सुनी हमने
क्या हसीं वादे हैं
जिनको आजमाने से
टूटती हैं हड़तालें
क्या तलाश करती हैं
बस्तियां फसादों में
क्यूँ तमाम चेहरों पे
बेपनाह फुर्सत है
कौन अब सुने किसकी
कोई कुछ नहीं कहता
मैं जहाँ पे मेहमान हूँ
कोई शै नहीं रहता
आज इस रिहाई का
क्या करूंगा मैं आख़िर /
हम जिसे निभा लेंगे
वो ही दोस्ती होगी
बिन कहे सुने कुछ भी
चल रहा है अफ़साना
अब कोई भी
अजनबी सा
वाकया नहीं होता
अब कभी भी मिलने में
हादसा नहीं होता,
आजकल यूँ मिलते हैं
हम बिना जरूरत के
जैसे
ना भी मिलने पे
कुछ कमी नहीं शायद,
अब हमारी बेफिक्री
का ये कैसा आलम है
तुम भी कुछ नहीं कहते
मैं भी कुछ नहीं कहता
बिन कहे सुने कुछ भी
चल रहा है अफ़साना