Tuesday, 31 March 2009

अजीब दूरी है

आज इस रिहाई का
क्या करूंगा मैं आख़िर ,
कोई भी नहीं अपना
गैर भी नहीं कोई
एक अजीब दूरी है ..../
एक की रिहाई है
दस हजार गुम सुम हैं
बेजुबान होने के
सैकड़ों बहाने हैं /
कैसे कैदखाने हैं
जो हमें नहीं दिखते
उस मकान के पीछे /
कौन सी कहानी है
जो नहीं सुनी हमने
क्या हसीं वादे हैं
जिनको आजमाने से
टूटती हैं हड़तालें
क्या तलाश करती हैं
बस्तियां फसादों में
क्यूँ तमाम चेहरों पे
बेपनाह फुर्सत है
कौन अब सुने किसकी
कोई कुछ नहीं कहता
मैं जहाँ पे मेहमान हूँ
कोई शै नहीं रहता
आज इस रिहाई का
क्या करूंगा मैं आख़िर /
हम जिसे निभा लेंगे
वो ही दोस्ती होगी
बिन कहे सुने कुछ भी
चल रहा है अफ़साना
अब कोई भी
अजनबी सा
वाकया नहीं होता
अब कभी भी मिलने में
हादसा नहीं होता,
आजकल यूँ मिलते हैं
हम बिना जरूरत के
जैसे
ना भी मिलने पे
कुछ कमी नहीं शायद,
अब हमारी बेफिक्री
का ये कैसा आलम है
तुम भी कुछ नहीं कहते
मैं भी कुछ नहीं कहता
बिन कहे सुने कुछ भी
चल रहा है अफ़साना

Monday, 30 March 2009

कहाँ किसकी नज़र से लापता हूँ मैं खुदा जाने
खुदा जाने
हमारे दम पे आख़िर कौन रौशन है/
यकीनन ,
मैं भी कुछ अनजान हूँ
अपनी जरूरत से ,
यकीनन ,
तुम भी हो पुर्जे
मिलों में कारखानों में /
कोई तो है
कि जो
हम सब की मेहनत का जुआरी है /
कहाँ किस मोड़ पर
इस जिंदगी से
जूझते हैं हम
कहाँ किसके लिए कोई पहेली बूझते हैं हम/
ये सब बातें
खुदा जाने
के इनकी क्या हकीक़त है,
के बस हम जानते हैं के
बहुत ग़मगीन है दुनिया ,
के इस दुनिया की सारी मुश्किलों के हल
खुदा जाने

तूफ़ान के रहते हुए

तुम जहाँ पर रुक गए थे

वो जगह चलने की थी

तुम जहाँ पर बुझ गए थे

वो सुबह जलने की थी

थक गए थे तुम जहाँ

थकना नहीं था उस जगह

उस जगह

फिर से उठानी थी

नज़र में रौशनी

देखना था के उजाला

आपकी पहलू में है

तुम जरा सा थम गए थे देख कर तूफ़ान को

के और कुछ नीची पड़ेंगी रास्तों की अड़चनें

और कुछ समतल बनेगा

इस समंदर का सफर

पर हमेशा खौफ ही है

इस समंदर का,

कि जो

पार करना है तुम्हें

तूफ़ान के रहते हुए,

तूफ़ान में ही ये समंदर

सब हुनर देगा तुम्हें,

तुम जहाँ पर रुक गए हो

वो जगह चलने की है

Friday, 27 March 2009