तुम जहाँ पर रुक गए थे
वो जगह चलने की थी
तुम जहाँ पर बुझ गए थे
वो सुबह जलने की थी
थक गए थे तुम जहाँ
थकना नहीं था उस जगह
उस जगह
फिर से उठानी थी
नज़र में रौशनी
औ
देखना था के उजाला
आपकी पहलू में है
तुम जरा सा थम गए थे देख कर तूफ़ान को
के और कुछ नीची पड़ेंगी रास्तों की अड़चनें
और कुछ समतल बनेगा
इस समंदर का सफर
पर हमेशा खौफ ही है
इस समंदर का,
कि जो
पार करना है तुम्हें
तूफ़ान के रहते हुए,
तूफ़ान में ही ये समंदर
सब हुनर देगा तुम्हें,
तुम जहाँ पर रुक गए हो
वो जगह चलने की है
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