Monday 30 March 2009

तूफ़ान के रहते हुए

तुम जहाँ पर रुक गए थे

वो जगह चलने की थी

तुम जहाँ पर बुझ गए थे

वो सुबह जलने की थी

थक गए थे तुम जहाँ

थकना नहीं था उस जगह

उस जगह

फिर से उठानी थी

नज़र में रौशनी

देखना था के उजाला

आपकी पहलू में है

तुम जरा सा थम गए थे देख कर तूफ़ान को

के और कुछ नीची पड़ेंगी रास्तों की अड़चनें

और कुछ समतल बनेगा

इस समंदर का सफर

पर हमेशा खौफ ही है

इस समंदर का,

कि जो

पार करना है तुम्हें

तूफ़ान के रहते हुए,

तूफ़ान में ही ये समंदर

सब हुनर देगा तुम्हें,

तुम जहाँ पर रुक गए हो

वो जगह चलने की है

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