Sunday 10 April 2011

दीवानगी का मतलब

दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से
तुम प्यार भी करोगे
मौक़ा निकाल कर के
इज़हार भी करोगे
सबका ख़याल कर के
इश्क है या क्या है ...
ये कैसा माजरा है
दीवानगी है... या के
बनिए का बटखरा है
आधा गले मिलोगे
तो दूरियां बढेंगी
महबूब से जो मिलना
पूरी तरह से मिलना

पहलू में खींच कर के
बाहों में भींच कर के
Ego हटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
सीना सटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
.............
जानम से जब भी मिलना
बिस्तर सजा के मिलना
डंके बजा के मिलना
तेवर में आ के मिलना

सुन इश्क का फ़साना
बेबाक जवानी से
लुटने का वक़्त आया
लूटो जहान वालों......
हम हाथ बढ़ाएंगे
तुम बेड़ियाँ तो लाओ
काफी जगह है अब भी
तुम गोलियां चलाओ
चौड़े हैं बहुत सीने
है इश्क बहुत गहरा
तुम पार हो गए तो
समझो के गनीमत है
समझो के गनीमत है
इक शै से प्यार करना
.......
हर शै से प्यार करना
आसां नहीं है बच्चू
.......
मुश्किल है
यानि ये भी
मुमकिन ज़रूर होगा

आओ के दुनिया में बहुत
और काम भी हैं
जैसे के ख्वाब सारे
असली बनाने होंगे
गुमनाम सारे मसले
सडकों पे लाने होंगे
वो सब उधार बातें
जिनका के वास्ता है
जनता की रोटियों से
चर्चे में लानी होंगी
आँखें मिलानी होंगी
तीली जलानी होगी
और फूंकना पडेगा
अपने मकान को भी
.........................
ये घर दुआर आँगन
कॉपी कलम के टंटे
बीमारीओं की गुत्थी
मसला ए रोजगारी
सब फूंकना पडेगा
सब फूंकना पड़ेगा
नॉलेज के सारे खाने
कॉलेज के सब खजाने
नकली इमारतें हैं
कुछ भी खरा नहीं है
रद्दी के भाव बेचो
या फूंक दो इन्हें भी

सच्चाइयों के ऊपर
हैं सैकड़ों कलेवर
जेवर हटा के देखो
तेवर में आके देखो
महबूब के लबों को
कच्चा चबा के देखो
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से

जो सब हसीन रातें
और बेहतरीन रातें
तनहाइयों में जग कर
हमनें गुज़ार डालीं
उन सबका वास्ता है
आओ टटोल डालें
हम आखिरी सिरे तक
आओ के ढूँढते है
इक पूंछ भी मिलेगी
हम जानवर हैं अब भी
और ये ज़रूरी भी है

जानम की पसलिओं में
हम उंगलियां गड़ा कर
छू लेंगे धडकनों को

आओ के चूम लूं मैं
फिर से तुम्हारी जांघें

आओ के रात अब भी
आधी बची पडी है
लेकिन ये स्साली दुनिया
शायद बहुत बड़ी है
और घर से निकलना है
भीतर से निकलना है
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से

........दूसरा खंड समाप्त

Friday 8 April 2011

बदलेगा सारा मंज़र

लौटेंगी आंधियां अब
टकरा के चिलमनों से
आवाज़ आ रही है
मिटटी की धडकनों से
मिट जायेंगे मुहाने
ढह जायेंगे ठिकाने
बदलेंगी रास्तों को
फिर से तमाम नदियाँ
फिर से सजायेंगे हम
गुस्से को नए सिरे से
अबके अदीब सारे
मिट्टी के शेर होंगे
हैं साहिबान जितने
तीतर बटेर होंगे
वो देखो कांपते हैं
उलझन सजाने वाले
गरमी को भांपते हैं
सरहद बनानेवाले
चूल्हे सुलग रहे हैं
मसले भी जग रहे हैं
मैदां में आ गए हैं
लोहा गलाने वाले
सारे के सारे आये
जो भी थे आने वाले
अब फूँक दो ज़मीं को
या फोड़ो आसमां को
अब कुछ नहीं है मुमकिन
बदलेगा सारा मंज़र....
संगीन थरथरा कर
गोली चला रहे हैं
फ़ौलाद जैसे सीने
आते ही जा रहे हैं
...........
हैं मौत के फ़साने
सब उनके कारखाने
तोपें भी बन रही हैं
बैनर भी छप रहे हैं
जितने भी हैं दिवाने
सब भूख के बहाने
नोटों को जप रहे हैं
वोटों में खप रहे हैं
..........
लेकिन अभी भी मौसम
ऐसा है हर तरफ के
मरता है बोनेवाला
पीता है सोनेवाला
लगता है ऐसा क्यूँ कर
कुछ तो है होनेवाला
कुछ तो है होनेवाला
......
मेहराब चरमरा कर
गिर जायेंगे यक़ीनन
तुम देख लेना यारों
ऐसा ज़रूर होगा
ये सब सितम के किस्से
कब तक उबाल लेंगे
इक रोज़ रोशनी हम
आँखों में डाल लेंगे..........
वो चाप सुन रहे हो
जो लोग आ रहे हैं
जिनको के टीवी वाले
नक्सल बता रहे हैं
.........
कुत्तों को सरहदों से
जंगल में ला रहे हैं
बिजनेस के सब खिलाड़ी
हमको लड़ा रहे हैं
हम लड़ रहे हैं छक्के
हम लड़ रहे हैं चौके
हम लड़ रहे हैं देखो
हर ओर बौखला के
हम लड़ रहे हैं देखो
अपनों से खौफ़ खा के
वो बाँटते हैं हमको
हम
बंटते ही जा रहे हैं
बंटते ही जा रहे हैं
..............
वो बस्ती जला रहे हैं
वो टावर बना रहे हैं
बंबई के बांदरा में
सुलगे से आंधरा में
अखबार सारे उनके
व्यापार सारे उनके
पी.एम्. से लेके सी. एम्.
दरबार सारे उनके
जनपथ के इक महल से
कुछ शाही शाहजादे
दुश्मन को दे रहे हैं
पेट्रोलियम के वादे
यूरेनियम के गड्ढे
पैलेडियम की खानें
बस्तर के ठीक नीचे
है सब निगाह उनकी
जंगल के पेड़ उनके
जंगल की राह उनकी
वो सोचते हैं ऐसा........
पर ऐसा भी नहीं है
..............
तुम बम गिराओ चाहे
एटम गिराओ चाहे
हारेंगे हम नहीं तो
जीतोगे तुम कहाँ से
हारेंगे हम नहीं तो
जीतोगे तुम कहाँ से...............
कोई रास्ता नहीं है
चाहे जहां भी जाओ
हम हर जगह मिलेंगे
बाजू उठा के देखो
चौपाल नुक्कड़ों पे
सब दौड़ती ट्रकों पे
रेलों में धडाधडा कर
आते ही जा रहे हैं
पटरी पे राजधानी
दिल्ली को जा रही है
संसद बचाओ अपने
सब पद बचाओ अपने
छोडो दलाल धंधे
मरने का वक़्त आया
चाहे बटन दबा लो
तुम रेड ग्रीन सारे
अब वक़्त आ गया है
बदलेगा सारा मंज़र
..........
कोहराम इस समय का
इतिहास में दिखेगा
हाथों से पोछ देंगे
अट्टालिकाएं सारी
इक फूंक से उड़ेंगे
सारे हवाई अड्डे
सिस्टम के सब अदालत
धरती पे ढेर होंगे
दुनिया के हर शहर में
बहुत हेर फेर होंगे
वो देखो सारे घोड़े
सब हाथ के हथोड़े
बढ़ते ही आ रहे हैं
बढ़ते ही आ रहे हैं
सब थाम लो लगामें
गर्दन उठा के देखो
गर देखना हो तुमको
परदे हटा के देखो
वो देखो बान्दरा में
बिल्डर के चंद लौंडे
पेट्रोल छीट कर के
सबको जला रहे हैं
फायर ब्रिगेड वाले
पहुंचे नहीं हैं अब तक
पहुंचे ..तो tanker में
पानी नहीं हैं उनके
पानी नहीं है.....यानि
पेट्रोल भरा होगा...
..........
सिस्टम के सब मुलाजिम
बिल्डर के वास्ते हैं
शब्दों के खाली डिब्बे
शायर के वास्ते हैं
टायर जला के मारो
या फायर चला के मारो
बात तो वही है
परदे हटा के देखो
गर्दन कटा के देखो
गुस्से में आ के देखो
बदलेगा सारा मंज़र
..............
तुम आजमा के देखो
पंजे लड़ा के देखो
बदला है जब से मौसम
किस्सा बदल गया है
सिस्टम के सारे पुर्जे
अब जंग खा गए हैं
और
लोहा गलाने वाले
मैदान में आ गए हैं
कटघरे में कैदी
गाँव के भोले भाले
और सच खंगालते हैं
ये काले कोटवाले
ये झूठे डेट सारे
ये जम्बो जेट सारे
औंधे पड़ेंगे इक दिन
मजदूर उठ रहे हैं
मजबूरिओं से ऊपर
बदलेगा सारा मंज़र
.............
इतना सुकून क्यूँ है
हर सू जिधर भी देखो
पुस्तक में क्या लिखा है
थोडा इधर भी देखो
मसला यहाँ खडा है
मुद्दा बहुत बड़ा है
मुट्ठियों को कस लो
डर को हटा के देखो
खुद से निकल के आओ
बाहर भी चल के आओ
दुनिया बहुत बड़ी है
दुनिया बहुत बड़ी है



पहला खंड समाप्त ........