दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से
तुम प्यार भी करोगे
मौक़ा निकाल कर के
इज़हार भी करोगे
सबका ख़याल कर के
इश्क है या क्या है ...
ये कैसा माजरा है
दीवानगी है... या के
बनिए का बटखरा है
आधा गले मिलोगे
तो दूरियां बढेंगी
महबूब से जो मिलना
पूरी तरह से मिलना
पहलू में खींच कर के
बाहों में भींच कर के
Ego हटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
सीना सटा के मिलना
जानम से जब भी मिलना
.............
जानम से जब भी मिलना
बिस्तर सजा के मिलना
डंके बजा के मिलना
तेवर में आ के मिलना
सुन इश्क का फ़साना
बेबाक जवानी से
लुटने का वक़्त आया
लूटो जहान वालों......
हम हाथ बढ़ाएंगे
तुम बेड़ियाँ तो लाओ
काफी जगह है अब भी
तुम गोलियां चलाओ
चौड़े हैं बहुत सीने
है इश्क बहुत गहरा
तुम पार हो गए तो
समझो के गनीमत है
समझो के गनीमत है
इक शै से प्यार करना
.......
हर शै से प्यार करना
आसां नहीं है बच्चू
.......
मुश्किल है
यानि ये भी
मुमकिन ज़रूर होगा
आओ के दुनिया में बहुत
और काम भी हैं
जैसे के ख्वाब सारे
असली बनाने होंगे
गुमनाम सारे मसले
सडकों पे लाने होंगे
वो सब उधार बातें
जिनका के वास्ता है
जनता की रोटियों से
चर्चे में लानी होंगी
आँखें मिलानी होंगी
तीली जलानी होगी
और फूंकना पडेगा
अपने मकान को भी
.........................
ये घर दुआर आँगन
कॉपी कलम के टंटे
बीमारीओं की गुत्थी
मसला ए रोजगारी
सब फूंकना पडेगा
सब फूंकना पड़ेगा
नॉलेज के सारे खाने
कॉलेज के सब खजाने
नकली इमारतें हैं
कुछ भी खरा नहीं है
रद्दी के भाव बेचो
या फूंक दो इन्हें भी
सच्चाइयों के ऊपर
हैं सैकड़ों कलेवर
जेवर हटा के देखो
तेवर में आके देखो
महबूब के लबों को
कच्चा चबा के देखो
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से
जो सब हसीन रातें
और बेहतरीन रातें
तनहाइयों में जग कर
हमनें गुज़ार डालीं
उन सबका वास्ता है
आओ टटोल डालें
हम आखिरी सिरे तक
आओ के ढूँढते है
इक पूंछ भी मिलेगी
हम जानवर हैं अब भी
और ये ज़रूरी भी है
जानम की पसलिओं में
हम उंगलियां गड़ा कर
छू लेंगे धडकनों को
आओ के चूम लूं मैं
फिर से तुम्हारी जांघें
आओ के रात अब भी
आधी बची पडी है
लेकिन ये स्साली दुनिया
शायद बहुत बड़ी है
और घर से निकलना है
भीतर से निकलना है
दीवानगी का मतलब
उतना नहीं है बस के
तुम सोचते हो जितना
अपनी सहूलियत से
........दूसरा खंड समाप्त
Sunday, 10 April 2011
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