कोई तो मुजरिम बताया जाएगा
फैसला जब भी सुनाया जाएगा
या तो अम्बर को छुपा लेंगे कहीं
या तो पत्थर को मनाया जाएगा
दीवार को गिरने की आदत है मगर
फिर से इंटों को सजाया जाएगा
अबके सीखेंगे सँभालने का हुनर
फिर मुक़द्दर आजमाया जाएगा
गर हुआ पैबंद बिस्तर में कही
ख्वाब को पहले बिछाया जाएगा
Monday, 27 April 2009
ghazal
ना जाने क्यूँ हुआ करता है अक्सर वक्त थोड़ा सा
अभी तो आसमां में एक दरिया भी बनाते हम
अब क्या सुनें तेरी के सहरा में नहीं कुछ भी
अगर अपनी गरज होती समंदर ढूँढ लाते हम
तुम्हारे ख़त में इतने फासलों का ज़िक्र था वरना
अगर थोडी जगह होती तो शायद मान जाते हम
बहुत जायज है तेरा ज़िक्र महफिल में उठा देना
अगर सबसे छुपाते अब तलक तो भूल जाते हम
अगर मिलते कदम तेरे, पता अपना बताते हम
उन्हें घर पे बुलाते और तुझको आजमाते हम
अभी तो आसमां में एक दरिया भी बनाते हम
अब क्या सुनें तेरी के सहरा में नहीं कुछ भी
अगर अपनी गरज होती समंदर ढूँढ लाते हम
तुम्हारे ख़त में इतने फासलों का ज़िक्र था वरना
अगर थोडी जगह होती तो शायद मान जाते हम
बहुत जायज है तेरा ज़िक्र महफिल में उठा देना
अगर सबसे छुपाते अब तलक तो भूल जाते हम
अगर मिलते कदम तेरे, पता अपना बताते हम
उन्हें घर पे बुलाते और तुझको आजमाते हम
ghazal
हौले हौले मोम से गल जायेंगे
तुम जिस कदर चाहोगे हम ढल जायेंगे
आओ ढूँढें आग की परछाइयां
कच्चे रिश्ते ख़ुद ब ख़ुद जल जायेंगे
कौन सा वादा है अपना मौत से
तुम कहो रुक जाओ, तो कल जायेंगे
कर के देखो रास्तों पे बंदिशें
फिर बंदिशों के पाँव निकल जायेंगे
रेशा रेशा रात खुलती जायेगी
रफ्ता रफ्ता रस्सी के बल जायेंगे
तुम जिस कदर चाहोगे हम ढल जायेंगे
आओ ढूँढें आग की परछाइयां
कच्चे रिश्ते ख़ुद ब ख़ुद जल जायेंगे
कौन सा वादा है अपना मौत से
तुम कहो रुक जाओ, तो कल जायेंगे
कर के देखो रास्तों पे बंदिशें
फिर बंदिशों के पाँव निकल जायेंगे
रेशा रेशा रात खुलती जायेगी
रफ्ता रफ्ता रस्सी के बल जायेंगे
Thursday, 23 April 2009
खाली घडे जैसा
वो बस
इक बूँद था
और मैं
किसी खाली घडे जैसा ..
मेरी बुनियाद में
मसलों की इंटें थीं लड़कपन से
उसे बचपन से ही महलों में
कुछ ज्यादा
थी दिलचस्पी,
मैं कंचों को जमीं पर खेलता था
उँगलियों से जब
वो बाहर
ताश के पत्ते सजा कर
दांव चलता था.........
बहुत ज्यादा बड़ा वो हो गया है
आजकल मुझसे
के मैं
अब बूँद हूँ
और वो
किसी खाली घडे जैसा .
इक बूँद था
और मैं
किसी खाली घडे जैसा ..
मेरी बुनियाद में
मसलों की इंटें थीं लड़कपन से
उसे बचपन से ही महलों में
कुछ ज्यादा
थी दिलचस्पी,
मैं कंचों को जमीं पर खेलता था
उँगलियों से जब
वो बाहर
ताश के पत्ते सजा कर
दांव चलता था.........
बहुत ज्यादा बड़ा वो हो गया है
आजकल मुझसे
के मैं
अब बूँद हूँ
और वो
किसी खाली घडे जैसा .
सुलगी ..तो सुलगा कर देखेंगे
सुलगी ....
तो सुलगा कर देखेंगे
हम भी आग लगा कर देखेंगे
ज़ख्मों को सहला कर देखेंगे
लोहे को पिघला कर देखेंगे
सिस्टम से टकरा कर देखेंगे
हम भी दांव लगा कर देखेंगे
सुलगी........
........तो सुलगा कर देखेंगे
तो सुलगा कर देखेंगे
हम भी आग लगा कर देखेंगे
ज़ख्मों को सहला कर देखेंगे
लोहे को पिघला कर देखेंगे
सिस्टम से टकरा कर देखेंगे
हम भी दांव लगा कर देखेंगे
सुलगी........
........तो सुलगा कर देखेंगे
Wednesday, 15 April 2009
तब कहना
एक नमाजी
जब आवारा हो जाएगा तब कहना
जब घड़ियों में साढे बारह
हो जाएगा तब कहना
सूरज के सारे कारिंदे
जब कोड़े बरसाएंगे
धूप में थक कर जब वो बन्दा
सो जाएगा
तब कहना
मैं उस वक्त कहीं ए सी में
बैठे बैठे सुन लूँगा
जब आवारा हो जाएगा तब कहना
जब घड़ियों में साढे बारह
हो जाएगा तब कहना
सूरज के सारे कारिंदे
जब कोड़े बरसाएंगे
धूप में थक कर जब वो बन्दा
सो जाएगा
तब कहना
मैं उस वक्त कहीं ए सी में
बैठे बैठे सुन लूँगा
गलोब्लैजेशन में गुलज़ार
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
और कुछ पन्ने जरा सा khadkhada कर रह गए
और कुछ अल्फाज़ थे
जो लड़खड़ा कर रह
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
और कुछ पन्ने जरा सा khadkhada कर रह गए
और कुछ अल्फाज़ थे
जो लड़खड़ा कर रह
रिंग
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रिंगा
रिंगा
रिंगा
रिंग
रिंग
रिंगा
रिंगा
रिंगा
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