कोई तो मुजरिम बताया जाएगा
फैसला जब भी सुनाया जाएगा
या तो अम्बर को छुपा लेंगे कहीं
या तो पत्थर को मनाया जाएगा
दीवार को गिरने की आदत है मगर
फिर से इंटों को सजाया जाएगा
अबके सीखेंगे सँभालने का हुनर
फिर मुक़द्दर आजमाया जाएगा
गर हुआ पैबंद बिस्तर में कही
ख्वाब को पहले बिछाया जाएगा
Monday, 27 April 2009
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