वो कहानी
वो अफ़साने
किरदार वो
वक्त की गर्म शाही सियाही तले
अब भी जिंदा लहू से चमक्तें हैं जो
उनकी सब कोशिशों का सिला है ये लौ
इसकी मद्धम लगन
इसकी पुरजोर कोशिश सुलगते हुए
इतनी रौशन के
तुमसे और हमसे कई
काढ़ लाते हैं सिस्टम के अंधे कुएं से जरा हौसला....
के ये हौसला
उन दीवानों ने तोहफे में
भेजा हमें
रौशनी के लिए जो कहीं खोह में
जल गए लौ की मानिंद अपनी जगह
वो जगह अब भी jyaada ghana डर लिए
ghooma करता है झूठे कई सर लिए
जिनको waajib batlane के waaste
पहले khwabon के guchchhe uchhale गए
phoonk कर gaaon से सब nikale गए
जो jahan fit हुए jhat से dale गए
कुछ to ऊंचे bike boliyon की तरह
beringon में ghise goliyon की तरह
sabko peesa गया जिस तरह ये pise
rail की सब patariyaan बनी हर तरफ़
jinke hathon और hathon के chhale लिए
jinke bachche wahin मोड़ per सो गए
हार कर नींद से बिन niwale लिए
ये सड़क जिसकी taamir में ungliyaan
pattharon की तरह kooch डाली गयीं
ये patariyaan जो dam saadh कर थाम lein
rajdhani की bebaak raftaar को
इन patariyon से wabasta घर lut गए
भूख jinke daron पे rambhati रही
और tarakki की reil आती जाती रही
वो diwane जो bazaar में बिन bike
रौशनी के लिए chhatpatate रहे
उनकी
सब कोशिशों का सिला है ये लौ
Friday, 17 July 2009
Thursday, 16 July 2009
डर लगता है
जब रेल में चढ़ना होता है , डर लगता है
जब खेल में लड़ना होता है , डर लगता है
जब यारों से तू तू मैं मैं हो जाती है
भीगी बच्ची फुटपाथ पे जब सो जाती है
जब एअरपोर्ट पे तीस रुपए के पानी से
उनके कुत्तों की प्यास बुझाई जाती है
जब परदे पर जूरी के आगे बर्लिन में
उस इक बच्चे पे फ़िल्म दिखाई जाती है
जब सीन सराहा जाए बंद थिएटर में
जब क्रेडिट पढ़ना होता है , डर लगता है
नंगे पाँव चलने वालों की बस्ती में
जब शीशे के baazaar sajaye jate हैं
जब मन्दिर मस्जिद gurudware के साथ साथ
ऑफिस केबिन में शीश नवाए जाते हैं
जब दाल भात भी थाली में कम जाता है
जब भीतर का सारा उछाल थम जाता है jab
shehjaade गद्दी पे बिठाये जाते हैं
जब भूख प्यास फर्जी बतलाये जाते हैं
जब की लड़ना है लटक रहे सब तालों से
टाटा बिरला और यम् कुबेर दिक्पालों से
जब शोर शराबा भीतर से हुंकार करे
जब असलाहों में दस्ताने बारूद भरें
जब भरी सभा में घोषित हो सम्मान कोई
जब अपना मुखिया बन जाए अनजान कोई
जब कदम ताल पे संगीनें उद्घोष करें
जब मरनेवालों पे जनता अफ़सोस करे
जब आम बजट से गुड गायब हो जाता है
अपने बूते से बाहर सब हो जाता है
जब सरकारी दफ्टर सब दल्ले हो जायें
जब अस्पताल पैसे के गल्ले हो जायें
जब इस्कूलों में बाप की दौलत पढ़ती हो
जब घर बिन बतलाये धाये जाते हैं
जब डर पाले और बढाये जाते हैं
जब पलते पलते और पालतू हो जायें
जब अपनी नजरों में ही फालतू हो जायें
जब सत्य ahinsaa और भरम के नारों से
जब ladnewalon को नकली hathiyaro से
lais kara के border पे thele जायें
जब cash के dum पे खेल सभी खेले जायें.......
जब खेल में लड़ना होता है , डर लगता है
जब यारों से तू तू मैं मैं हो जाती है
भीगी बच्ची फुटपाथ पे जब सो जाती है
जब एअरपोर्ट पे तीस रुपए के पानी से
उनके कुत्तों की प्यास बुझाई जाती है
जब परदे पर जूरी के आगे बर्लिन में
उस इक बच्चे पे फ़िल्म दिखाई जाती है
जब सीन सराहा जाए बंद थिएटर में
जब क्रेडिट पढ़ना होता है , डर लगता है
नंगे पाँव चलने वालों की बस्ती में
जब शीशे के baazaar sajaye jate हैं
जब मन्दिर मस्जिद gurudware के साथ साथ
ऑफिस केबिन में शीश नवाए जाते हैं
जब दाल भात भी थाली में कम जाता है
जब भीतर का सारा उछाल थम जाता है jab
shehjaade गद्दी पे बिठाये जाते हैं
जब भूख प्यास फर्जी बतलाये जाते हैं
जब की लड़ना है लटक रहे सब तालों से
टाटा बिरला और यम् कुबेर दिक्पालों से
जब शोर शराबा भीतर से हुंकार करे
जब असलाहों में दस्ताने बारूद भरें
जब भरी सभा में घोषित हो सम्मान कोई
जब अपना मुखिया बन जाए अनजान कोई
जब कदम ताल पे संगीनें उद्घोष करें
जब मरनेवालों पे जनता अफ़सोस करे
जब आम बजट से गुड गायब हो जाता है
अपने बूते से बाहर सब हो जाता है
जब सरकारी दफ्टर सब दल्ले हो जायें
जब अस्पताल पैसे के गल्ले हो जायें
जब इस्कूलों में बाप की दौलत पढ़ती हो
जब घर बिन बतलाये धाये जाते हैं
जब डर पाले और बढाये जाते हैं
जब पलते पलते और पालतू हो जायें
जब अपनी नजरों में ही फालतू हो जायें
जब सत्य ahinsaa और भरम के नारों से
जब ladnewalon को नकली hathiyaro से
lais kara के border पे thele जायें
जब cash के dum पे खेल सभी खेले जायें.......
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