Friday, 30 January 2009

असल बात

ये जरूरतों की जो फेहरिस्त

दिखाते हो मुझे

इनमें क्या गैर जरूरी है, पता है हमको....

हमने खोले हैं सवालों को गठरिओं की तरह

हमने बस धूल हटा दी है असल बातों से..................

ये जो फैसले होते हैं अदालत में ,

ये जो डिग्रीयां बिकती हैं इश्तेहारों ,

ये जो अल्फाज़ चमकते हैं तितलिओं की तरह

ये जो की रोज छपा करते हैं अखबारों में,

ये सब पुर्जे हैं हवाओं में उड़ने के लिए

के ये पत्ते हैं फ़क़त छुपने छुपाने के लिए

के असल बात कहीं और ही ढकी है अभी ...

हमने जवाबों को तलाशा नहीं है और कहीं

हमने अल्फाज तलाशें हैं

नए मानी में;

हमने बस धूल हटा दी है असल बातों से

हमने बस चाँद हटाया है

हसीं रातों से......

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