Friday, 17 May 2013

समंदर पे हम अपना रुआब रखते हैं

वो कहते हैं अक्सर नीचे ज़मीन पर देखो 
मगर हम के करें हम ऊंचे ख्वाब रखते हैं 


 जो हम नहीं रखते वो बस हम नहीं रखते
मगर जो हम रखते हैं वो बेहिसाब रखते हैं 


हमने हवाओं के हवाले किया है कश्ती को
मगर समंदर पे हम अपना रुआब रखते हैं 

1 comment:

Anil Sahu said...

दिल बाग़-बाग़ हो गया मेरा.