Thursday, 25 September 2008

जो अंत तक परदे पे ठहरा हो

पहले भागने वाले झट से लापता हो गए
किसी बस ट्रेन या ऑटो या पैदल
जिस तरह से भी.......................
बहुत ज्यादा जलालत लोग थे कुछ
सह नहीं पाए
वो कुछ बेहतर तमाशे देखने की जिद में हैं शायद
कोई ऐसा करिश्मा जो कभी सदियों में मुमकिन हो
या शायद वो भी नामुमकिन,
जिन्हें शर्मो हया में बंद रखना था कुंवारापन
वो सब झेंप कर थोड़ा
हुए रुखसत वहाँ पर से
..................वहाँ पर से
जहाँ पर जंग जारी थी उनके पीछे
मैं उस बेशर्म बे गैरत की बातें करना चाहूँगा
जिसे कूचा गया और थूर कर फोड़ा गया पहले
अभी दो चार मिनटों में तमाशा खुलने वाला है
हमारे लंड पे बैठा हुआ मोटा सा कनगोजर
के समझो डेढ़ फुट लंबा
बहुत ही लिजलिजा चिकना......................
डर के वो लम्हे बहुत कुछ होंगे ऐसे ही
के जिन लम्हों में उनके हौसले टूटे या ना टूटे
ये उनका पर्सनल मुद्दा है छोडो ये कहानी तुम
के आख़िर तक टिके रहना भी इक अच्छी कहानी है
बहुत अच्छा फ़साना है कभी सुनने सुनाने को
मगर वो ही कहे जो अंत तक परदे पे ठहरा हो

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