Wednesday, 24 September 2008

हमारा भी भरोसा

हमारा भी भरोसा कीजिये
हम सच बताते हैं
जहाँ की बात उट्ठी है
वहाँ जाते हैं हम अक्सर,
गुजरते हैं बहुत फुर्सत से उन गलियों से कूचों से .....
बहुत तहजीब तो शायद नहीं है
हाँ मगर फिर भी .............
अब
इतनी भी नहीं नफरत
के क़त्लऐ आम हो ,
हाँ ठीक है....... के सर मिले हैं कई ठिकानों पे
और कई ठिकानों पर मिले हैं पाँव के जूते
मगर अब वो नहीं होंगे जो रहते थे वहाँ पहले
ना उनकी आत्मा होगी ना उनके जिस्म के टुकड़े
किसी गुमनाम फाइल में दबी हैं अस्थियाँ उनकी
हमारे पास
बस कुछ आंकड़े हैं कहने सुनने को
वहीँ से आए हैं हम
भाग कर भटके हुए .........
ये सब किस्से हमारी आँख के आगे हुए तो क्या
ये सब किस्से हुए
कहते हैं सुनते हैं सुनते हैं
हमारा भी भरोसा कीजिये हम सच बताते हैं।

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