Sunday, 1 February 2009

बीच नदी में साँस नहीं छोड़ा करते

सूरज का पहला अफसाना डूब रहा था
अफसानों में
रौशन था मैं
चम-चम , चम -चम
एक वजह थी
दाँव लगा कर हम बैठे थे
एक वजह
मैं पानी को घोल रहा था
उन सब वजहों की रंगीनी गुम हो जाए
इस से पहले
मसलों को सुलझाना होगा
वो शफ्फाक अँधेरा तारी हो जाए
इस से पहले डॉट लगाना है अम्बर पे;
साँस उखड जाने से पहले खुल जाओ .....
दम है,
शायद
ये घबरा कर घुट जाए
अब भी सारे काम वहीँ हैं जस के तस
अब भी अपने हथियारों पे जीना है
अब भी टकराकर जाना है लहरों से
बीच नदी में साँस नहीं छोड़ा करते
थक कर अपनी राह नहीं मोड़ा करते
गर
जिन्दा
उस पार नदी के जाना है ..............

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