और जब जहन में आ गए कई सवाल
तो हमने कहा
के सुनो ......
कतार में रहो ,
अच्छे भले हो आदमी
आँखें खुली रखो ,
यूँ खामख्वाह के मत किसी खुमार में रहो ...............
तेरे बदन पे तिल कहाँ हैं
जानते हैं हम
अब तुम
हमारे काले कारोबार में रहो
सारे गुनाह खिल के तो गुलाब हो गए
अब
आज से
काँटों के इख्तियार में रहो
Tuesday 10 February 2009
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2 comments:
भाई प्रमोद! सबसे पहले तो बहुत बहुत बधाई कि अब आप भी ब्लोग पर आ गये हैं. आप की कविता मुझे हमेशा से पसंद रही है. देरी से टिप्पणी के लिये माफी चाहूंगा. बाकी कविताऐं पढने के लिये फिर लौटुंगा..
Hawaaon mein abhi lautega fir barood ka mausam.......
Abhi topein chalengi jangalon mein dekh lena tum.
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