क्यूँ नहीं तुम मान जाती हो
मेरी सब खोखली बातें
के जब तक
हम सफर में हैं
कोई तो राह चलनी है
तुम्हारे पास भी तकलीफ के काफ़ी बहाने हैं
जिन्हें तुम उँगलियों पर भी
गिना देती हो गुस्से में,
और जिनको
चुटकियों पर मैं बजाता हूँ बड़े मन से/
के अब इन
रोज़ के झगडों से हम
बस खेलते भर हैं
सफर ये रुक नहीं सकता है
इन छोटी दलीलों से
तुम्हें भी इल्म है इसका
मुझे भी जानकारी है .....
सफर में साथ हैं हम तुम
तो इतना तो यकीं भी है
के सूरज
ढल नहीं जायेगा
जल बुझ कर के कल परसों
जिसे अब हार कहते हैं
उसे तब जीत कह देंगे
के कुछ भी
तय नहीं है
अब तलक भी दरमियान अपने
किसे क्या नाम देना है
किसे क्या नाम देना है
के आओ
खोखली बातों को भरने का मजा देखें
के आओ
अपनी मर्ज़ी से गुजरने का मजा देखें
Thursday 25 September 2008
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1 comment:
bahut acha kawita thi, mere dil ko choo gai,
thank u mujhe yaad kiya
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